पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४१
पहिला हिस्सा
 


देख कर ताज्जुब करने लगी ।

आँख खुलने पर इन्दु ने एक ऐसी औरत को भी अपने सामने इज्जत के साथ बैठे देखा जिसे सब हकीमिनजी के नाम से सम्बोधन करती थी और जिसके विषय में जाना गया कि वह इन्दुमति का इलाज कर रही है ।

निःसन्देह इन्दुमति को गहरी चोट लगी थी और उसे करवट बदलना भी बहुत कठिन हो रहा था। उसे इस बात का बड़ा ही दुख था कि वह जोती बच गई और दुश्मनो के हाथ में फंस गई, परन्तु इस समय जितनी औरते वहाँ मौजूद थी, सभी खूबसूरत, कमसिन, खुशदिल, हंसमुख और हमदर्द मालूम होती थी। सभी को इस बात की फिक्र थी कि इन्दुमति शीघ्र अच्छी हो जाय और उसे किसी तरह की तकलीफ न रहे । सभी धार के साथ उसकी खिदमत करती थी, दिल बहलाने की बातें करती थी, और कई उसके पास बैठी सर पर हाथ फेरती हुई प्रेम मे पूछती कि 'कहो बहिन मिजाज कैसा है ? अब तुम किसी बात की चिन्ता न करो यह घर तुम्हारे दुश्मनो का नही है बल्कि दोस्तो का है जो कि बहुत जल्द तुम्हें मालूम हो जायगा और यह भी मालूम हो जायगा कि दुश्मनो के हाथो से तुम किस तरह छुड़ा ली गई । जरा तुम्हारी तबीयत अच्छी हो जाय तो मैं सब राम- काहानी कह सुनाऊँगी. तुम किसी तरह की चिन्ता न करो।' इत्यादि ।

उन बातो से मालूम होता था कि ये सब की सब लोंडी ही न थी बल्कि अच्छे खानदान की लड़कियां थी और दो एक तो ऐसी थी' जो बरादरी का ( बल्कि उससे भी बढ़ कर होने का ) दावा रखती थी ।

यह सब कुछ था परन्तु इन्दुमति को इस बात का ठीक पता नहीं लगता था कि वह वास्तव में दुश्मनो की मेहमान है या दोस्ती की । यद्यपि उनकी हर तरह से खिदमत होती थी, उसकी खातिरदारी की जाती थी, उसे भरोसा दिलाया जाता था और जिनमे वह खुश हो वह करने के लिये सब तैयार रहती थी, यह सब कुछ वा मगर फिर भी उसके दिल को भरोसा नहीं होता था।