७५ पहिला हिस्सा उधर घूमने और टहलने लगे । जव रोशनी अच्छी तरह फैल चुको तव दक्खिन और पश्चिम कोण की तरफ रवाना हुए। जव मैदान खतम कर चुके और पहाडी के नीचे पहुचे तो उन्हें एक हलकी सी पगडण्डी दिखाई पडी जो कि बहुत ध्यान देने से पगडण्डी मालूम होतो थी, हाँ इतना कह सकते हैं कि उस राह से पहाडी के ऊपर कुछ दूर तक चढने में सुभीता हो सकता था अस्तु प्रभाकरसिंह पहाडी के ऊपर चढने लगे। लगभग पचास कदम चढ जाने के बाद उन्हें एक छोटी सी गुफा दिखाई दी जिसके अन्दर चे वेधडक चले गए और फिर कई दिनोतक वहाँ से लौट कर वाहर न पाए। पाठवां बयान अाज प्रभाकरसिंह उस छोटी सी गुफा के बाहर पाए है और साधारण रीति पर वे प्रसन्न मालूम होते हैं । हम यह नहीं कह सकते कि वे इतने दिनो तक निराहार या भूखे रह गए हो क्योकि उनके चेहरे से किसी तरह को कमजोरी नहीं मालूम होतो। जिस समय वे गुफा के बाहर निकले सूर्य भगवान उदय हो चुके थे । उन्होने बंगले के अन्दर जाना कदाचित् उचित न जाना या इसकी कोई आवश्यकता न समझी हो अस्तु वे उस सुन्दर घाटी में प्रसन्नता के साथ चारो तरफ टहलने लगे। नही नहीं, हम यह भी नहीं कह सकते कि वे वास्तव में प्रसन्न थे क्योंकि वीच में उनके चेहरे पर गहरी उदासी छा जाती थी और वे एक लम्बी मांस लेकर रह जाते थे। सम्भव है कि यह उदासी इन्दुमति की जुदाई से सम्बन्ध रखती हो और वह प्रसन्नता किसी ऐसे लाभ के कारण हो जिसे उन्होने उस गुफा के अन्दर पाया हो । तो क्या उन्हें उस गुफा के अन्दर कोई चीज मिली थी या उस गुफा की राह से वे इस घाटी के वाहर हो गए थे अथवा उन्हें मिसो तिलिस्म का दर्वाजा मिल गया जिसमें उन्होंने कई दिन विता दिए जो हो, वात कोई अनूठी जरूर है और घटना कोई आश्चर्यजनक अवश्य है। बहुत देर तक इधर उधर घूमने के वाद वे एक पत्थर की सुन्दर चाटन
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