१ भूतनायें पर बैठ गए और साथ ही किसी गम्भीर चिन्ती में निमग्न हो गएँ । इसी समय इन्हें इन्दुमति ने पहाडी के ऊपर से देखा थी मगर इस बात की प्रभाकरसिंह को कुछ खबर न थी। बहुत देर तक चट्टान पर बैठे बैठे कुछ सोचने विचारेने के बाद उन्होंने सर उठायां और इस नीयत से बैंगले की तरफ देखा कि चलें उसके अन्दर चल कर किसो और विषय की टोह लगावें। उसी समय बंगले के अन्दर से प्रोती हुई तीन औरतों पर उनकी निगाह पडो जिनमें से एक इन्दुमति दूसरी विमला और तीसरी कला थी। इन्दुमति को देखते ही वे प्रसन्न होकर उठ खडे हुए, उधर इन्दुमति भी इन्हें देखते ही दीवानी सी हो कर दौडी और प्रभाकरसिंह के पैरो पर गिर पड़ी। प्रभाकर० । (इन्दु को उठा कर) अहा इन्दे ! इस समय तुझे देख कर मैं कितना प्रसन्न हुआ यह कहने के लिए मेरे पास केवल एक ही जुबान है अस्त में कुछ कह नही सकता। इन्दु० । नाथ, मुझे आपने धोखे में डाला । (मुस्कुगती हुई) मुझे तो इस बात का गुमान भी न था कि पाप मेरे साथ चलते हुए रास्ते में किसी चुलबली औरत को देख कर अपने प्रापे से बाहर हो जायेंगे और मेरा साथ छोड कर उसके साथ दौड पडेंगे । क्या इस विपत्ति के समय में मुझे अपने साथ लाकर ऐसा ही वर्ताव करना आपकी उचित था? क्या आपकी उन प्रतिज्ञामो का यही नमूना था । प्रभा० । (हंसते हुए) वाह, तम अपनी वहिन को और अपने ही मुह से चुलबुली वनायो । क्या मैं किसी चुडैल के पीछे दौडा था ? तुम्हारी बहिन ईन विमला हो ने तो मुझे रोका और कहा कि जरूरी बात कहनी है । मैने समझा कि यह अपनी है जरूर हो कुछ भलाई की बातें कहेंगी, अस्तु इनके फेर में पंढ गया और तुम्हें खोबैठा । तुम्हारे सांय गुलाबसिंह मौजूद हो ये और इघर विमला से मैं कुछ सुना चाहता था। ऐसी अवस्था में यह