पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/७२

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पहिला हिस्सा फव प्राशा हो सकती थी कि साधारण मामले पर इसना बडा पहाड़ टूट पड़ेगा ! सच तो यह है कि तुम्हारी वहिन ने मुझे धोखा दिया जिसका मुझे बहुत रंज है और मैं इसके लिए उनसे बहुत बुरा वदला लेता मगर आज इन्होने तुमसे मुझे मिला दिया इसीलिए मैं इनका कसूर माफ करता हू मगर इस बात की शिकायत जरूर करूंगा कि मुझे यहा फंसा इन्होने भूखो मार डाला, खाने तक को न पूछा । सानो सानो वैठ जानो, सब कोई बैठ कर वातें करें। विमला० । वाह ! बहुत अच्छी कही,अापने तो मानो अनशनवत्त ग्रहण किया था | साफ साफ क्यो नही कहते कि किसी फिक्र और तरद्द के कारण खाना पीता कुछ अच्छा ही नहीं लगता था कला० । ( नुस्कुराती हुई ) रात रात भर जाग के कोने कोने को तलाशो लिया करते थे कि शायद कही छेद सूराख भोर आले पालमारी में से इन्दुमति निकल पावे। प्रभा० । (चौंक कर, कला से) सो क्या । विमला० । वस इतना ही तो! खैर इन बातो को जाने दीजिए यह बताइए कि आप मुझसे सन्तुष्ट हुए कि नही?या पापको इस बात का निश्चय हुप्रा या नहीं कि हम लोगो ने जो कुछ किया वह नेकनोयतो के साथ था प्रभागचाहे यह वात ठोक हो,चाहे तुम हर तरह से निर्दोष हो, चाहे तुम दोनो बहिनो पर किसी तरह के ऐव का घना लगाना कठिन अथवा असम्भव ही क्यो न हो, परन्तु मैं-इतना तो जरूर कहूगा कि तुम्हारी यह कार्रवाई वदनीयती के साथ नहीं तोवेवकूफी के साथ जरूर हुई । सम्भव था कि जिस दुश्मन.पर फतह,पाफे तुम इन्दुमति-को छुड़ा लाई वह प्रोर जबर्दस्त होताया तुम पर फतह पाजाता तो फिर इन्दुमति पर केसी, मुसीवत गुजरती! मेरो समझ में नहीं पाता कि इस अनुचित और टेढी वात से तुम्हें या हमें क्या फायदा पहुंमा, हा इन्दुमति जस्मो हई मह-मुनाफा-जरूर, हुमा । जिस रह तुमने । मुझे बहकाया था, उस-तरह-वहा यही समझा दिया होता कि ?