पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/८५

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भूतनाथ - स्वप्न मे भी नही जान सकता था कि दयारामजी को तुमने मारा होगा। अफसोस॥ भूतनाथ० । गुलावसिंह, आश्चर्य की बात है कि तुम इतने बड़े होशि- यार होकर भी इस पत्थर की मूर्ति की बातो में फंस गए और जो कुछ उसने कहा उसे सच समझने लगे । इतना तक नही बिचारा कि यह प्रस- म्भव वाद वास्तव मे क्या है ? नि सन्देह यह घोखे की टट्टी है और इसमें कोई अनूठा रहस्य है वल्कि यो कहना चाहिए कि यह कोई तिलिस्म है और इसका परिचालक ( इस समय जो कोई भी हो ) जरूर हमारा दुश्मन है । गुलाव० । नही नही भूतनाथ, अब तुम हमे धोखे मे डालने की कोशिश मत करो और न अव हम लोग तुम्हारी बातो पर विश्वास ही कर सकते है । ऐसी आश्चर्यमयी अनूठी घटना का प्रभाव कैसा हम लोगों के ऊपर पडा उसे हमी लोग जान सकते है। भूतनाथ० । सैर, तुम जानो, जो जी मे आये करो और जहाँ चाहो चले जामो, मै तुम्हे अपने पास रहने के लिए जोर नहीं देता, मगर तुम दोस्त हो अस्तु निश्चिन्त रहो, मै तुम्हे किसी तरह को तकलीफ न दूंगा। इसके बाद इन तीनो मे किसी तरह की बातचीत न हुई, गुलावसिह और प्रभाकरसिंह पूरव की तरफ रवाना हुए और भूतनाथ ने पश्चिम की तरफ का रास्ता लिया। ग्यारहवां वयान ऊपर लिसी वारदात के तीसरे दिन उसी अगस्ताश्रम के पास प्राधी रात के समय हम एक आदमी को टहलते हुए देखते हैं। हम नहीं कह सकते कि यह कौन तथा किस रग ढग का आदमी है, हाँ इसके कद को ऊंचाई से साफ मालूम होता है कि यह प्रोरत नही है बल्कि मर्द है यगर यह नहीं मालूम पड़ता कि अपनी स्याह पोशाक के अन्दर मह फिस ठाठ से है अर्थात् यह आदमी जिसने स्याह लवादे से अपने को अच्छी तरह छिपा रक्या है सिपाहियों और वहादुरो की तरह