पहिला हिस्सा के हर्वे हथियारो से सजा हुआ है या चोरो की तरह सन्धियो वगैरह से और हत्थियो वगरह से । जो हो, हमे इसके व्योरे से इस समय कोई मत- लव नही, हमें सिर्फ इतना ही कहना है कि यह यद्यपि टहल टहल कर अपना समय विता रहा है मगर इसमें कोई शक नहीं कि अपने को हर तरह से छिपाए रखने की भी कोशिश कर रहा है। दिन का मुकाविला करने वाली चांदनी यद्यपि अच्छी तरह छिटकी हुई है मगर उस अन्वकार को दूर करने की शक्ति उसमें नहीं है जो इस समय पेड़ो की झुरमुट के अन्दर पैदा हो रहा है और जिससे उस टहलने वाले व्यक्ति को अच्छी सहायता मिल रही है। अगस्ताश्रम की तरफ घडी घडी अटक कर देसने और पाहट लेने से यह भी मालूम होता है कि वह किसी आने वाले को राह देख रहा है। इमे टहलते हुए घण्टा भर से ज्यादे हा गया और तब इसने दो प्राद- मियो को पाते और अगस्ताथम की तरफ जाते देखा। ये दोनो कद के घोटे तथा टाल तलवार तथा तीर कमान से सुसज्जित थे मगर इनकी पोशाक के बारे में हम इस समय किनी तरह की निन्दा या प्रशंसा नहीं कर सकते। मालूम होता है कि वह टहलने वाला स्याहपोश इन्हीं दोनों पादमियो का इन्तजार कर रहा था क्योकि जैसे ही वे दोनो अगम्ताश्रम की चार- दीवारी के अन्दर घुमे वैसे ही इसने उसका पोछा किया। उनके कुछ ही देर बाद यह स्याहपोश भी चारदीवारी के अन्दर जा पहुंचा मगर वहां उन दोनो पर निगाह न पडी । पहिले इसने मन्दिर के चारो तरफ की परि- क्रमा को और उन दोनो को टंडा, और जब पता न लगा तव मन्दिर के अन्दर पर रक्सा मगर वहाँ भी कोई न था। हम पहिले वह पाए है कि यह मन्दिर बहुत छोटा और नावारण था अतएव इसके अन्दर किमी के खोजने में विलम्ब करना वेशक पागल- पन समझा जा सकता है मगर उस त्याहपोश ने इसका कुछ भी विचार न दिया और खूब अच्छी तरह खोज टाला यहा तक कि उस छोटे से कुण्ड में भी तलवार डाल कर जाच लिया जिसमें हर दम पानी भरा रहता था।
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