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पृष्ठ:भूतनाथ.djvu/८८

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पहिला हिस्सा इसके जवाब में भूतनाथ ने हाथ वढा कर एक की कलाई पकड लो, मगर साथ ही इसके दूसरे नकाबपोश ने भूतनाथ पर छुरी का वार किया जिसके लिए शायद वह पहिले हो से तैयार था। वह छुरी यद्यपि बहुत वडी न थी मगर भूतनाथ उसको चोट खाकर सम्हल न सका । छुरी भूत- नाथ के बगल में चार प्रगुल धंस गई और साथ ही भूतनाथ यह कहता हुआ जमीन पर गिर पडा-"नोफ । यह जहरीलो छुरी......." बारहवां वयान दिन पहर भर से ज्यादे चढ चुका था जय भूतनाथ की वेहोशी दूर हुई और वह चैतन्य होकर ताज्जुव के साथ चारों तरफ निगाहें दौडाने लगा। उसने अपने को एक ऐसे कैदखाने में पाया जिसमे से उसको हिम्मत और जवामर्दी उसे बाहर नहीं कर सकती थी। यद्यपि यह कैदखाना बहुत छोटा और अन्धकार से साली था मगर तीन तरफ से उसको दीवारें बहुत मजबूत और सगीन थी तथा चोयी तरफ लोहे का मजबूत जगला लगा हुआ था जिसमे पाने के लिए छोटा सा दर्वाजा भो था जो इस समय वहुत वडे ताले ते वन्द था। इस कंदपाने के अन्दर बैठा बेटा भूतनाग अपने सामने का दृश्य बहुत प्रच्छी तरह देख सकता था। थोडी देर इधर उधर निगाह दौडाने के वाद वह उठ खडा हुप्रा और जंगले के पास आकर बडे गौर से देखने लगा। उसके सामने वही मुन्दर जमीन और खुशनुमा घाटी थी जिसका हाल हम ऊपर बयान कर पाये है, जो कला प्रोर विमला के कम्जे में है, अथवा जाँ यो मर घमो अभी प्रभाकरसिंह कर आये है । वीच वाले मुन्दर फमरे को भूतनाथ बडे गौर के साथ देख रहा था क्योकि यह कैदखाना जिसमें भूतनाथ पंद था, पहाड की ऊंचाई पर बना हुया था जहां से इस घाटी का हर एक हिस्सा साफ साफ दिखाई दे रहा था। उसकी चालाक मौर वचल निगाहें