पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/११५

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[२४ ] (अधिकाभेद रूपक) जेते हैं पहार भुव माहिं पारावार तिन सुनि के अपार कृपा गहे सुख फैल है। भूयन भनत माहि तनै सरजा के पास आइवे को चड़ी उर होसनि की ऐलं है| किरवान वत्र सों विपच्छ करिबे के डर आनिक कितेक आए सरन को गैल है। मवत्रा नही मैं तेजवान लिवराज वीर कोट करि सकल सपच्छ लिए सैल है ।। ६६॥ परिणाम लक्षण-दोहा जह अभेद करि बुहुन लो करत और वे काम । भनि भूपन सब कहत हैं तासु नाम परिनाम ।। ६७ ।। शाहरण-मालती सवैया भौसिला भूप बली भुव को भन भारी भुजंगम नों भुज लीनों । भूपन तीखन तेज तरन्नि सों वैरिन को कियों पानिप हीनो ॥ दारिद दी करि वारिद सो दलि यों घरनील १ ऐल= वृता (मान्य मापा “बहिलो")। २ इंद्र ने हाड़ों के पट बड़ कर वाले थे, उन पर नि है।

  • इजा नौनि उन, डिक और न्यून दळून एक ना होवे हैं जो नपा ने नहीं

निवा है। ३माना। ४ दौरहा, नवे दंगल में चारों को लगने वाली अग। ( दरिद्र को दौरहा श्रो गन (अन) यी नेत्रने नाश करने)।