पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/११७

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[ २६ ] पुनरपि यथा-मनहरण दंडक कवि कह करन,' करनजीत कमनैत, अरिन के उर माहिं क्रीन्यो इमि छेव है। कहत धरेस सत्र धरावर सेस ऐसो और धराधरन को मेन्यो अहमेव है ।। भूपन भनत महाराज सिवराज तेरो राज कान देखि कोऊ पावत न भव है । कहरो बदिल, मौज लहरी कुनुव कहें, वहरी निजाम के जितया कहें देव है ।। ७२ ।। (एक द्वारा उल्लेख ) पैज प्रतिपाल भूमिभार को हमाल चहुँ चक को अमाल भयो दंडक जहान को । साहिन को साल भयो ज्वाल को जबाल भयो हर को कृपाल भयो हार के विधान को । बीर रस ख्याल सिब- राज भुवपाल तुव हाथ को विसाल भत्री भूपन बखान को ? तेरो करवाल भयो दच्छिन को ढाल, भयो हिंदु को दिवाल, भयो काल तुरकान को ।। ७३ ॥ स्मृति लक्षण-दोहा सम सोभा लखि आन की सुधि आवति जेहि ठौर ।. स्मृति भूपन तेहि कहत हैं भृपन कवि सिरमौर ।। ७४ ।। १ कर्ण (बड़ा दानी या)। २ अर्जुन जिसने कर्ग जैसे महावीर को जीत लिया। ३ वोझ उठानेवाला, हामिल। ४ आमिल, हाकिम । ५ स्मृति में अप्रसंगी से प्रसंगी का स्मरण माता है ।