पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१२६

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[ ३५ ] खीझि मीर अचलन सों। भूषन भनत बलि करी है अरीन धर धरनी पै डारि नभ प्रान दै वलन सों॥ अमर' के नाम के बहाने गो अमरपुर चंदावत लरि सिवराज के दलन सों। कालिका प्रसाद के बहाने ते खवायो महि बाबू उमराव राव पसु • के छलन सों ॥ १७ ॥ उत्प्रेक्षा लक्षण-दोहा आन बात को आन मैं चहँ संभावन होय । वस्तु, हेतु, फलयुत कहत उत्प्रेक्षा है सोय ॥९८॥ उदाहरण । उक्त विषया वस्तूत्प्रेक्षा-मालती सवैया दानव आयो दगा करि जावली दीह भयारो महामद भायौ । , अमरसिंह चंदावत भी इसी युद्ध में मारा गया था। यह भारी सरदार था। भूपण जो ने बराबर इसके विषय में सम्मानपूर्वक लिखा है और शिवाजी की प्रशंसा करते हुए यहाँ तक कहा है कि "हिंदु वचाय बचाय यहो अमरेस चैदावत लौ कोश टूट' ( छंद नं० १५५, २२५, २३६, २७५, देखिए ) मेवाड़ ( उदयपुर ) के प्रसिद्ध चंदा जी के वंशधर लोग "चंदावत' कहलाते हैं। · २ समझाना । उत्प्रेक्षा में उपमेय का वस्तु, हेतु या फल रूप में बनावटी (आहार्य) संशय-शान उपमान कोटि में प्रबल होता है। यह संभावना जनु, मनु, मानो आदि वाचकों द्वारा होती है । जहाँ ये वाचक ऊह्य रूप में होते हैं वहां गम्योत्प्रेक्षा होती है। जहाँ यह संशथ शान उपमान कोटि में प्रवल न होकर समभाव मात्र में रहे, वहाँ सन्देहमान अलंकार होता है। ३ उक्त विषया वस्तूप्रेक्षा में उत्प्रेक्षा का विषय कथित होता है । उदाहरण में कवि मयंद द्वारा गयन्द का पछारा नाना कहता भर है, किन्तु जानता है कि बात यह है नहीं तो भी आरोप उसी का करता है। ४ अफजल खाँ जावली में मारा गया था।