पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१३२

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[ ४१ ] रूपकातिशयोक्ति लक्षण-दोहा ज्ञान करत उपमेय को जहँ केवल उपमान । रूपकातिशय-उक्ति सो भूषन कहत सुजान ।। १८९ ॥ उदाहरण-मनहरण दंडक बासव से बिसरत बिक्रम की कहा चली, विक्रम लखत" बीर बखत-बुलंद के। जागे तेजबूंद सिवा जी नरिंद मसनंद माल मकरंद कुलचंद साहिनंद के ॥ भूषन भनत देस देस वैरि नारिन मैं होत अचरज घर घर दुख दंद के । कनकलतानि' इंदु, इंदु माहिं अरविंद, झरै अरविंदन ते बुंद मकरंद के ॥ ११० ।। भेदकातिशयोक्ति लक्षण-दोहा जेहि थर आनहि भााँति की वरनत बात कछूक । + भेदकातिसय-उक्ति सो भूपन कहत अचूक ॥१११।। • भूषण ने अतिशयोक्ति के छः मेदों में सापन्हवातिशयोक्ति नहीं कही है। १ सोने की बौड़ी (सी देह ) में चंद्रमा ( सा मुख), चंद्रमा ( से मुख ) में कमल ( से नेत्र ) और कमल (जैसे नेत्रों) से मकरंद ( के समान आँसू) बूंद झर रही हैं। इसमें वयं में कुछ अन्तर दिखलाया जाता है।' . .