पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४८

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[ ५७ ] परिकर-परिकरांकुर लक्षण-दोहा साभिप्राय बिसेपननि भूपन परिकर मान । साभिप्राय विसेष्य ते परिकर अंकुर जान ।। १६० ।। उदाहरण-परिकर-कवित्त मनहरण बचेगा न समुहाने बहलोलखाँ' अयाने भूपन बखाने दिल आनि मेरा बरजा। तुझ ते सवाई तेरा भाई सलहेरि पास कैद किया साथ का न कोई बीर गरजा ॥ साहिन के साहि उसी औरंग के लीन्हें गढ़ जिसका तू चाकर औ जिसकी है परजा । साहिका ललन दिलीदलका दलन अफजल का मलन सिवराज आया सरजा ॥ १६१॥ जाहिर जहान जाके धनद समान पेखियतु पासवान यों खुमान चित चाय हैं । भूखन भनत देखे भूख न रहत सब १ छंद ९६ का नोट देखिए । बहलोल औरंगजेब का चाकर या प्रजा न था। एक बहलोल नामक छोटा सरदार दिल्ली का भी था। बीजापुरी बहलोल दो बार मुगलों की सहायता लेकर शिवाजी से लड़कर हारा था। इसी से व्यंग्य से भूषण उसे दिल्ली का चाकर और प्रजा कहते हैं, मानो वह अपने स्वामी वीजापुर-नरेश की भक्ति न करके दिल्ली की करता था। २ यह कौन भाई था, सो अशात है। सम्भवतः वहलोल का सगा, चचेरा, ममेरा, मौसेरा, पगड़ी बदल भादि भाइयों में से कोई बड़ा भाई सलहेरि के युद्ध में पकदा गया होगा।