पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१४९

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[ ५८ ] आपही सों जात दुख दारिद बिलाय हैं। खीझे ते खलक माहिं खलभल बारत है रीझे ते पलक माहिं कीन्हें रंक राय हैं । जंग जुरि अरिन के अंग को अनंग कीबो दीयो सिव साहब के महज सुभाय हैं ।। १६२ ।। अन्यच दोहा सूर सिरोमनि सूर कुल सिब सरजा मकरंद । भूपन क्यों औरँग जितै कुल मलिच्छ कुल चंद ।।१६।। परिकरांकुर-दोहा भूपन भनि सत्रही तबहि जीत्यो हो जुरि जंग । क्यों जीतै सिवराज सों अत्र अंधक' अवरंग ? ॥१६॥ श्लेष लक्षण-दोहा एक वचन में होत जहँ बहु अर्थन को ज्ञान । स्लेस कहत हैं ताहि को भूपन मुकवि सुजान ।।१६५।। उदाहरण-कवित्त मनहरण सीता संग सोभित सुलच्छन सहाय जाके भूपर १ अन्धक दैत्य को शिव (शंकर जी) ने मारा था । २ सोता नो संग हैं क्यवा श्री अर्थात् लक्ष्मी ता ( उसके ) संग हैं। ३ लक्ष्मणजी अथवा न (सुन्दर) लक्षण अर्थात गुण ।