पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१५१

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की। चंचल सरस एक काहू पै न रहै दारी' गनिका समान सूवेदारी दिली दल की ।। १६७ ।। अप्रस्तुत प्रशंसा , लक्षण-दोहा प्रस्तुत लीन्हे होत जहँ, अप्रस्तुत परसंस। अप्रस्तुत परसंस सो कहत सुकवि अवतंस ॥ १६८ ॥ . उदाहरण-दोहा हिंदुनि सों तुरकिनि कहैं तुम्हें सदा संतोप । नाहिन तुम्हरे पतिन पर सिव सरजा कर रोप ।। १६९ ।। अरितिय भिल्लिनि सों कहें धन बन जाय इकंत । सिव सरजा सों वैर नहिं सुग्वी तिहारे कंत ॥ १७० ॥ पुनः मालती सवैया काहु पै जात न भूषन जे गढ़पाल कि मौज निहाल रहे हैं। आवत हैं जु गुनी जन दच्छिन भौसिला के गुन गीत लहे हैं। राजन राव सबै उमराव खुमान कि धाक धुके यों कहे हैं। संक नहीं, सरजा सिवराज सों आजु दुनी में गुनी निरभे हैं॥ १७१॥ छिनाल स्त्री। इस छंद को गणिका एवं दक्षिण की सूबेदारी दोनों ही पक्षों में ' ले सकते हैं। - भूषण ने प्रस्तुतांकुर अलंकार छोड़ दिया है ।