पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१७३

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मालादीपक एवं सार लक्षण-दोहा . दीपक एकावलि मिले मालादीपक होय । उत्तर उत्तर उतकरप सार कहत हैं सोय ॥ २३५ ।। उदाहरण माला दीपक कवित्त मनहरण मन कवि भूपन को सिव की भगति जीत्यो सिव की भगति जीयो साधु जन सेवा ने। साधु जन जीते या कठिन कलिकाल कलिकाल महावीर महाराज महिमेवा ने ॥ जगत में जीते महा- वीर महाराजन ते महाराज बावन हू पातसाह लेवा ने । पातसाह बावनौ दिली के पातसाह दिल्लीपति पातसाहै जीत्यो हिंदुपति सेवा ने ॥ २३६ ॥ ___सार यथा-मालती सवैया आदि बड़ी रचना है विरंचि कि जामै रह्यौ रचि जीव, जड़ो है । ता रचना महँ जीव वड़ो अति काहे ते ता उर ज्ञान गड़ो है। जीवन मैं नर लोग बड़े कवि भूषन भाषत पैज अड़ो है। है नर लोग मैं राज वड़ो सव राजन में सिवराज वड़ो है ।। २३७ ॥ • यहाँ धर्म अलग अलग नहीं कहना चाहिये । पृथक् पृथक् से दोपक न होकर यहाँ आवृत्ति दीपक हो गया है । दीपक में धर्म एकही वार कहा जाता है। दीपक में सादृश्य का सम्पर्क होता है किन्तु मालादीपक में अभाव । १ महिमावान्। २ नोवघारी और जड़ पदार्थ ।