पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१७९

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[ ८८ ] पुनः मालती सवैया देशन देशन नारि नरेसन भूपन यों सिख देहिं दया सों। मंगन है करि, दंत गहौ तिन, कंत तुम्हें हैं अनंत महा सॉ।कोट गहीं कि गहौ वन ओट कि फौज की जोट सजौ प्रभुता सों। और करौ किन कोटिक राह सलाह विना वचिहौ न सिवासों ।।२५० समाधि. लक्षण-दोहा और हेतु मिलि कै जहाँ होत सुगम अति कान। ताहि समाधि बखानहीं भूपन जे कविराज ।। २५१ ।। उदाहरण-मालती सवैया वैर कियो सिव चाहत हो तब लो अरि बाह्यो कहार कठैठो। योहीं मलिच्छहि छाड़े नहीं सरजा मन तापर रोस में पैठो।। भूपन क्यों अफजल्ल बचै अठपाव' के सिंह को पाँव उमैठो । बीकू के घाय धुक्योई धरक है तो लगि धाय धराधर बैठो ।। २५२ ।। १ सौहँ, कसम। २ उपद्रव, शरारत । “करो तुम माठपात्र पार्थं हम गारो गाँव में' (खुनाथ- रसिकमोहन ) । बुन्देलखंड में इसे अठाव कहते हैं। ३ धुकधुकाया, कलेजा काँपा ।