पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१८०

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[ ८९ ] समुच्चय लक्षण-दोहा एक बारही जहँ भयो बहु काजन को धंध । ताहि समुचय कहत हैं भूपन जे मतिबंध ॥ २५३ ॥ उदाहरण-मालती सवैया मॉगि पठायो सिवा कछु देस वजीर अजानन बोल गहे ना । दौरि लियो सरजै परनालो' यों भूपन जो दिन दोय लगे ना ।। धाक सों खाक बिजैपुर भो मुख आय गो खान खवास के फेना' । भै भरको करको धरकी दरकी दिल एदिल साहि कि सेना ॥ २५४ ॥ द्वितीय समुच्चय लक्षण-दोहा वस्तु अनेकन को जहाँ बरनत एकहि ठौर । दुतिय समुच्चय ताहि को कहि भूपन कविमौर ।। २५५ ।। - १ ई० नं० १०७ का नोट देखिए । मार्च सन् १६७३ की घटना है। २ छं० नं० २०६ का नोट. देखिए। ३ भयानक रसपूर्ण। ४ अन्य कवि इसका लक्षण यों देते हैं.--"द्वितीय समुन्धय में एक काज को कई कारण पुष्ट करते हैं। प्रथम समुम्चय में कई क्रियायें एकही भाव को साथही पुष्ट करती हिं । तथा दूसरे में बहुत से ऐसे कारण मिलकर एफही कार्य सम्पादित करते है, निन कारणों में प्रत्येक प्रधान रहता है और यह प्रकट नहीं होता कि उनमें से किससे कार्य सिद्धि हुई।