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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/१८७

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. [ ९६ ] पुन:-कवित्त मनहरण मेरु सम छोटो पन सागर सो छोटो मन धनद को धन ऐसो छोटो जग जाहि को। सूरज सो सीरो तेज चाँदनी सी कारी कित्ति अमिय सो कटु लागै दरसन ताहि को । कुलिस सो कोमल कृपान अरि भंजिबे को भूषन भनत भारी भूप भौसिलाहि को । भुव सम चल पद सदा महिमंडल में धुव सो चपल धुव बल सिव साहि को ।। २७३ ।। उल्लास लक्षण-दोहा एकहि के गुन दोष ते औरै को गुन दोस । बरनत हैं उल्लास सो सकल सुकवि मतिपोस ।। २७४ ।। ___ उदाहरण (गुणेन दोषो)। मालती सवैया __काज मही सिवराज वली हिंदुवान बढ़ाइवे को उर ऊट। भूषन भूनरम्लेच्छ करी चहै, म्लेच्छन मारियो को रन जूटै ॥ हिंदु बचाय बचाय यही अमरेस चंदावत लौं कोइ टूट। चंद अलोक ते लोक सुखी यहि कोक अभागे को सोक न छूटै ॥ २७५ ॥ पुनः ( दोषेण गुणो)। मनहरण दंडक । देस दहपट्ट कीने लूटि के खजाने लीने बचे न गढ़ोई काहू गढ़ सिरताज के । तोरादार' सकल तिहारे मनसबदार डाँड़े, १ तिहारे सकल तोरादार (तथा ) मनसवदार जिनके सुभाव मिलाज के ( अमि. मानी थे) युद्ध करके डाँडे।