[ १२० ] सूरति सहर वंककरि' अति डंक ॥ वंककरि अति डंककरि अस संकक्कुलि खल। सोचचकित भरोचञ्चलिय' विमोचच्चखजल ॥ तइमन कट्टिक" सोइ रटुटिल्लिय । सदिदिसि दिसि भद्दद्द- विभइ रद्ददिल्लिय' ।। ३५४ ॥ गत बल खानदलेल' हुव खान बहादुर मुद्ध । १ डंका वंक करके। २२स तरह सव खलों को सशंक करके। ३ भरोच शहर भागा। ४ वही बात मन में ठान कर। ५ कठिन ( पूरे) तौर से ठोक करके। ६ रट कर अर्थात् वार वार कह कर ठेल दिया। ७ भली भाँति सव दिशाओं में । ८ भद होकर और दव कर। या धावों की भद (गर्दा ) मे दव कर। ९ दिल्ली रद हो गई। १० दिलेर खाँ के विषय में छंद नं० २१२ के नोट में मिर्जा जयसिंह वाला। नोट देखिए । शिवाजी की हार के बाद दिलेर खौँ (दलेल खाँ) दक्षिण और मालवे का सूवेदार रहा। सन् १६७२ में दिलेर खौँ ने चाकन और सलहेरि को साथ साथ घेरा और सलहेरि में उसकी फौज की शिवाजी ने खूब हो खबर ली। छ नं० ९७ का नोट देखिए। १६७७ में दिलेर खाँ ने गोलकुंडा पर धावा किया था, पर मदनपंत से उसे हारना पड़ा। १६७९ में शंमानी अपने पिता ( शिवाजी) से! नाराज होकर दिलेर खाँ के यहाँ माग गया और उसने वाप बेटों को लड़ाना चाहा
पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२११
दिखावट