पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२२२

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[ १३१ ] - चरने निरुक्तिहु हेतु पुनि अनुमान कहि अनुप्रास । भूपन भनत पुनि जमक गनि पुनरुक्तिवद आभास ॥ युत चित्र संकर एक सत भूपन कहे अरु पाँच' । लखि चारु ग्रंथन निज मतो' युत सुकवि मानहु साँच ॥३७९।। दोहा सुभ सत्रहसै तीस पर बुध सुदि तेरसि मान । भूपण सिव भूपन कियो पढ़ियो सुनो सुजान ।। ३८० ।। __ आशीर्वाद-मनहरण दंडक एक प्रभुता को धाम, सजे तीनो वेद काम, रहै पंच आनन पड़ानन सरवदा । सातौ बार आठौ याम जाचक नेवाजे नव १ एक+सत+पाँच =१०६ अलंकार । भूपण जी १०६ अलंकार वर्णन करना लिखते हैं, पर ग्रन्थ में १०९ अलंकार पाए जाते है। लुप्तोपमा, न्यूनाधिक रूपक और गमगुप्तोत्प्रेक्षा के लक्षण और उदाहरण ग्राथ में दिए है (छंद नं० ३६-३८, ६४-६६ और १०६-१०८ देखिये ) और ये सव छंद भूपण कृत अवश्य जान पड़ते हैं, पर इनका नाम इस सची में नहीं है। कदाचित् भूपण जी ने इन्हें मुख्य अलंकारों मे न माना हो । २ दूसरे आचार्यों के मत के अतिरिक्त इन्होंने कुछ बातें अपने ही मत से लिखी हैं। जान पड़ता है कि इसी कारण कभी कभी इनके लक्षण अन्य आचार्यों से भिन्न हो जाते हैं (छंद नं. ६०, १४६, २५५ और २६७ आदि देखिए.)। - ३ संवत् १७३० बुध सुदी १३ को ग्रन्थ समाप्त हुआ, पर किस मास में, सो नहीं लिखा । इसका ब्योरा भूमिका में देखिए । कार्तिक ठोक बैठता है।