पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२४६

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- [ १५५ ] श्री छत्रसाल दशक इंक हाड़ा' बूंदी धनी मरद महेवा वाल । सालत नौरंगजेब को ये दोनों छतसाल' ।। वै देखौ छत्ता पता यै देखौ छतसाल । वै दिल्ली की ढाल यै दिल्ली ढाहन वाल ।। कवित्त मनहरण ___ छत्रसाल हाड़ा बूंदी नरेश विषयक चले चंदवान धनवान औ कुहूकवान' चलत कमान धूम आसमान छै रहो । चली जमडा बाढ़वाएँ तरवारै जहाँ लोह. आँच जेठ के तरनि मान चै रहो ॥ ऐसे समै फौजें विचलाई १ एक छत्रसाल हाड़ाबूंदी-नरेश थे। ये महाराज गोपीनाथ के पुत्र और राव रतनसिंह के पौत्र थे। ये स्वयं वावन लड़ाइयों में शरीक रहे थे । सन् १६५८ ई. में धौलपूर में दारा और औरगजेब की जो लड़ाई राज्यार्थ हुई थी, उसमें ये महाराज दारा के दल के हरोल में थे। उसी लड़ाई में बड़ी बहादुरी दिखा कर ये मारे गए। उसी का वर्णन भूपण ने इस दशक के प्रथम दो छंदों में किया है । २ दूसरे छत्रसाल चंपति राय बुंदेला के पुत्र थे। इन्हीं के अनिवार्य प्रयत्नों से इनका राज्य बुंदेलखंड भर में फैल गया था। ३ क्योंकि वे दिल्ली की ओर हो दारा की तरफ से लड़े थे । ४ अर्द्धचंद्र वाण। ५ अंधेरे में चलनेवाले बाण; इनके चलने से कुहू कुहू आवाज होने से ये कुहूंक. बान कहलाते थे । ४ तोप ।