पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२५२

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[ १६१ ] और राव राजा' एक मन मैं न ल्याऊँ अब साहू को सराहों के सराहों छत्रसाल को ॥ १०॥ स्फुट काव्य दोहा रेवा ते इत देत नहिं पत्थिक मेच्छ निवास । कहत.लोग इन पुरनि में है सरजा को त्रास ॥१॥ कवित्त मनहरन बाजि वंब चढ़ो साजि वाजि जब कलाँ भूप गाजी महाराज राजी भूपन बखानतें। चंडी की सहाय महि मंडी तेजताई ऐंड छंडो राय राजा जिन दंडो औनि आन ते ॥ मंदीभूत रवि १ भूमिका एवं स्फुट काव्य के छंद नं० ३ का नोट देखिए । २ महाराज साहूजी छत्रपति शिवाजी के पौत्र थे। शिवाजी के पुत्र और साहू जी के पिता का नाम शंमाजो था। साहू जी के हो राज्यकाल में मुगल साम्राज्य पूर्ण रूप से ध्वस्त हो गया था। साहू जी ने बहुत वर्ष राज्य किया था। शाहो कैद से धनका सन् १७०७ ई० में छुटकारा हुआ था। ३ नर्मदा नदी। ४ याह छंद शिवावावनी से आया है क्योंकि यह शिवाजी विषयक नहीं है। सन् १६६६ के लगभग का कथन है। ५ देवोजी को सहायता से ( मुलंकी ने ) पृथ्वी तेज से ता ( छादित ) कार मढ़ दो, और उन राय राजाओं ने भी, जिन्होंने औरों से भूमि दंड में ले ली थी, ऐंड छोड़ दी।