पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२५४

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[ १६३ ] . - देस दहपट्टि आयो आगरे दिली के मेले बरगी बहरि' चारु दल जिमि देवा को। भूपन भनत छत्रसाल, छितिपाल मनि ताकेर ते कियो बिहाल जंगजीति लेवा को ।। खंड खंड सोर यों अखंड महि मंडल में मंडो तें धुंदेल खंड मंडल महेवा को। दक्खिन के नाथ को कटक रोक्यो महावाहु ज्यों सहसवाहु नै प्रबाह रोक्यो नेवा को ॥४॥ तहवर खान हराय ऐंड अनवर कि जंग हरि । सुतुरदीन बहलोल गये अबदुल समद्द मुरि ॥ महमद को मद मेटि सेर अफगनहिँ जेर किय । अति प्रचंड भुजदंड वलन कहि नै दंड दिय ।। भूपन बुंदेल छत्रसाल डर रंगत ज्यो अवरंग लजि । झुक्के निसान तजि समर सों मक्के तकि" तुरुक्क भजि ॥ ५ ॥ सक्तजिमि सैल पर ६अर्क तम फैल पर विघन की रैल पर लम्बोदर लेखिये। राम दसकन्ध पर भीम जरासंध पर भूषन १ साथियों से वहर कर (बहिलाकर, भूलकर ) जैसे साथियों से भूल कर देवता शन्द्र का दल हो। २ युद्ध में जोतने वाले दल को केवल देखकर परेशान ( बिहल ) कर दिया। ३ नर्मदा नदो। ४ सदरुद्दीन। ५ ताक ( देख ) कर। ६ सूर्य । ७ गणेशजो।