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पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२६६

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[. १७५ ] के गौन जम गिनन न दैहैं, नग नगन चलैगो साथ नग न चलाइबो ॥ २९॥ . . . . सैयद मुगल पठान सेख चन्दावत दच्छन ।

सोम सूर द्वै बंस राव राना रन रच्छन ।

. ..... इमि भूषण अवरंग और एदिल दलजंगी। कुल करनाटक कोट, भोट कुल हबस फिरंगी ।। चहुँओर वैर महि मेर, लगि सहि तनै साहस झलक । फिरि एक ओर सिवराज नृप एक ओर सारी खलक॥३०॥ कोप करि चढ्यो महाराज सिवराज बीर, धौंसा की धुकार ते पहार दरकत हैं। गिरे कुम्भ मतवारे सो नित फुहारे छूटे, कड़ाकड़ छिति नाल लाखों करकत हैं ॥ मारे रन जोम के जवान खुरासान केते, काटि काटि दाटि दावे छाती थरकत हैं । रनभूमि लेटे वे चपेटे पठनेते पर, रुधित लपेटे मुगलेटे फरकत हैं ॥३१॥ दिली दल दलै सलहेरि के समर सिवा भूपन तमासे आप देव दमकत हैं। किलकत कालिका कलेजे की कलल२ करि करि के • अलल3 भूत भैरों तमकत हैं ॥ कहूँ रुण्ड मुण्ड कहूँ कुंड भरे सोनित के, कहूँ: बखतर करि झुण्ड झमकत हैं। खुले खग्ग कंध धरि ताल गति बन्धपरि धाय धाय धरनि कवन्ध धमकत हैं ।।३२॥ १ घोड़े को नाले जो पृथ्वी पर पड़ी हैं। २ कलोल; उछल कूद; खुशी। ३ मललै; तललैः; मजेदारो। ४ कहीं जिरह वख्तर और कहीं हाथियों के समूह झमाझम गिर रहे हैं।