पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/२७०

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. [ १७९ ] आलम पुकार करै आलम-पनाह जूपै होरी सी जराय सिवा सूरति 'फनां करी ॥ ४०॥ . साहि के सपूत सिवराज वीर तेरे डर अडग' अपार महा दिग्गज सो डोलिया । वन्दर बिलाइति लौंडर अकुलाने अरु 'संकित सदाई रहे वेस बहलोलिया ॥ भूषन भनत कौल करत कुतुबसाहि, चारै चहुँ ओर इच्छाएदिलशा भौ लिया । दाहि दाहि दिल कीन्हे दुख दही दाग ताते आहि आहि करत औरंग साहिऔलिया ॥४१॥ . ___ जानिपति बागवान मुगल पठान सेख बैल सम फिरत रहत दिन रात हैं। ताते है अनेक जोई सामने चलत सोई पीठि दै चलत मुखनाई सरसात हैं । भूपन भनत जुरे जहाँ जहाँ जुद्ध भूमि, सरजा सिवा के जस बाग न समात हैं। रहट की घरी जैसे औरंग के उमराव पानिप दिलीते लाय ढोरि ढोरि जात है ॥४२॥ साहिते विसाल भूमि जीती दस दिसन ते महि में प्रताप कीन्हों भारी भूप भान सों। जैसो भयो साहि के सपूत सिवराज बीर तैसो भयो होत है न है है कोउ आन सो॥ एदिल कुतुब. साहि नौरंग के मारिवे को भूषन भनत को है सरजा खुमान सों । तीनि पुर त्रिपुर के मारे सिव तीनि बान, तीनि पातसाही हनी एक किरवान सों ।। ४३ ॥ . १ अचल; न मागनेवाला; डग न देनेवाला । २ आदिल शाह डर कर चारों तरफ़ इच्छायें चलाते हैं। .....