पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३२

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[ २३ ] नित किया। सन् १७३४ के दास कवि ने लिखा है कि भूषण 'ने कविता से प्रचुर संपत्ति कमाई। इन बातों से भूषण संबंधी कई घटनाएँ दृढ़ता के साथ ज्ञात होती हैं । एक महाशय ने किसी वत्स गोत्री तिवारी . मतिराम की बनाई हुई वृत्त कौमुदी का कथन किया है । इन मतिराम का निवासस्थान वनपुर था और इनके पिता विश्वनाथ थे। पहले तो इस ग्रंथ का अस्तित्व ही संदिग्ध है, क्योंकि जिन्होंने इसका कथन किया है, वे कहते हैं कि अब यह मिल नहीं रहा है। यदि इसका अस्तित्व माने भी तो इसके रचयिता वत्स गोत्री मतिः राम थे जो कश्यप गोत्री हमारे मतिराम से भिन्न ही थे। अतएव वृत्त-कौमुदी के कथनों से भूषण और मतिराम के भ्रातृत्व में कोई संदेह नहीं पड़ता। सूर्यमल्ल बूंदी दरवार के कवि थे। उनके सन् १८४० के ग्रंथ वंशभास्कर में लिखा है कि मतिराम को बूंदी दरवार से समस्त वस्त्र, आभूषण, चार हजार रुपए, ३२ हाथी तथा रिड़ी और चिड़ी नामक दो ग्राम मिले थे। इतना पाने पर भी भूपण के आगे मतिराम का संपत्तिशाली कवियों में कुछ भी वखान नहीं हुआ। इससे भी जान पड़ता है कि भूपण ने कविता से मतिराम की अपेक्षा बहुत ही अधिक संपत्ति कमाई थी । इन महाकवि की कविता से प्रकट होता है कि ये बड़े ही सत्यप्रिय और यथार्थ-भापी थे, यहाँ तक कि इन्होंने शिवाजी की परांजय का भी वर्णन किसी न किसी रीति से कर ही दिया; और जहाँ शिवाजी ने कोई वेजा काम किया है, उसे भी कह दिया