पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३३

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[ २४ ] ( देखिए शि० भू० छंद नं० ७५, २१२, २१३, २७२ )। भूपणजी को हिंदू जातीयता का सदैव पूरा विचार रहता था। ये बड़े ही प्रभावशाली कवि हो गए हैं और इनका जैसा सम्मान अथवा धन किसी कवि ने कविता से अद्यापि उपार्जित नहीं किया। __भूपणजी के प्रस्तुत ग्रंथों में शिवराजभूपण, श्रीशिवाघावनी, छत्रसालदशक तथा स्फुट कवित्त इस ग्रंथ में दिए गए हैं। इनके ग्रंथों से उस समय के राजाओं एवं मुग़ल साम्राज्य की भी दशा विदित होती है। अतः सब से प्रथम हम भूपण की प्रस्तुत कविता से उस समय का जो कुछ हाल ज्ञात होता है, वह लिखते हैं। हर्प का विपय है कि भूपणजी का वर्णन इतिहास के विरुद्ध नहीं है, क्योंकि इन्हें इतिहास विरुद्ध बनाकर बातें लिखना पसंद न था। इनका लिखा हुआ हाल इतिहास से अधिक विस्तृत अवश्य है, क्योंकि कवि जितने विस्तार और समारोह के साथ कोई घटना लिखता है, वैसा इतिहासकार प्रायः नहीं करता। इसमें केवल सन् संवत् का व्योरा और घटनाओं का क्रम हम अपनी ओर से लिखते हैं, शेप सब भूपण के छंदों से लिखा जाता है। इनके लिखे अनुसार उस समय का इतिहास यों है। सूर्य वंश पृथ्वी पर विख्यात है जिसमें परमेश्वर ने बार बार अवतार लिया । इसी वंश में एक बड़ा प्रतापी राजा हुआ जिसने अपना सिर शङ्करजी पर चढ़ाकर अपने और स्ववंशजों के लिये सीसोदिया ( हिंदूपति महाराणा उदयपुर एवं नेपाल के राजा इसी उज्ज्वलवंश के हैं) की उपाधि प्राप्त