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शाह को सलाम नहीं किया और मूंछ पर ताव देकर अपनी स्वतं- त्रता एवं क्रोध प्रकाश किया । इनके रोव से दरवार में सन्नाटा पड़ गया.। इनके हाथ में कोई अस्त्र न था, नहीं तो वहीं मार काट होने लगती । निरस्त होने से क्रोध के मारे आप मूर्छित हो गए और तव लोग इन्हें गुसलखाने में ले जाकर होश में लाए। इन्हीं कारणों से भूपणजी ने कई स्थानों पर गुसलखाने का वर्णन किया है। फिर आप तरकीब से आगरे से निकल आए और अपना राज्य करने लगे। सन् १६६९ में औरंगजेब ने हिंदुओं के असंख्य मंदिर खुद- वाए, मथुरा को ध्वस्त करके देहरा केशवराय तुड़वा डाला' और स्वयं काशी विश्वनाथ के मंदिर तक को नष्ट करके उसके. स्थान पर मसजिद वनवाई (शिवा० वा० छंद नं० २०, २१,. २२ देखिए ) । सन् १६७० में शिवाजी ने फिर सूरत लूटी । उसी साल आपने उदेभान राठौर को मारकर सिंहगढ़ मुग़लों से छीन लिया। यह दुर्ग आपने सन् १६६६ में जयसिंह को दिया था। मुग़लों ने शिवाजी की यह प्रचंड धृष्टता देख बड़ा क्रोध करके एक विकराल सेना दिलेर स्नाँ और खानजहाँ बहादुर के आधि- पत्य में भेजी, परंतु सन् १६७२ ई० में शिवाजी ने सलहेरि पर
- उस समय शिवाजी और महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब को जो पत्र लिखे थे,
वे देखने योग्य है। ग्रांट टफ कृत मरहठों के इतिहास और टाँट राजस्थान में उनके. अनुवाद दिए हुए हैं। --