पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/३९

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[ ३० ] इस बृहत् सेना को पूर्णतया परास्त किया। इस युद्ध में दिल्ली के तैंतीस बड़े सेनापतियों को इन्होंने पकड़ लिया और कोटा बूंदी के राजकुमार किशोरसिंह, मोहकमसिंह, इखलास खाँ आदि को परास्त करके समस्त दिल्ली दल का बड़ा ही विकराल कतले आम किया। इसी युद्ध में कितने ही रहेले, सैय्यद, पठान, चंदावत, आदि मारे गए । तदनंतर दिलेर खाँ को पराजित करके शिवाजी ने रामनगर एवं नवार पर वैरियों को परास्त किया और गुज. रात को भी नीचा दिखाया। ___ इसके पश्चात् आपने सन् १६७३ में मृत आदिलशाह के नाबालिग पुत्र के पालक एवं समस्त राज्य के प्रबंधकर्ता खवास खाँ से कुछ देश माँग भेजे, परंतु वजीरों ने न दिए । तत्र दो ही दिना में दौड़कर आपने बहलोलखाँ को हराकर परनाले का किला छीन लिया। इस पर खवास खाँ ने बहलोल खाँ को आप से लड़ने को फिर भेजा, परंतु उसे मरहठों ने घेर लिया और कृपा करके जाने दिया । फरवरी मार्च सन् १६७४ में शिवाजी के सेनापति हंसाजी मोहिते ने जसारी पर बहलोल खाँ को पूर्णतया पराजित किया। इस समय बीजापुर समान शत्रु नहीं रहा था, इसी लिये भूपण लिखते हैं कि "वापुरो एदिलसाहि कहाँ कहाँ दिल्ली को दामनगीर शिवाजी । • इस समय जून सन् १६७४ में शिवानों ने अपना अभिषेक कराया और अपने नाम का सिक्का चलाया। सन् १६६७ ३० में प्रसिद्ध छत्रसाल बुंदेला शिवानी से मिलने आए थे और इनसे प्रोत्साहित होकर मुगलों से लड़ने लगे थे। सन् १६७४ तक वे महाराज मो कई छोटे छोटे दलों को लोत बुंदेलों का दल जोड़ मुगलों से बड़े दल के साथ लड़ने लगे थे।