पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/४३

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[ ३४ ] थी। तीसरे युद्ध में स्वयं औरंगजेव शाहजादा आजम के साथ मुग़लों का मुख्य दल लिए अकबर और दिलेरखाँ की बाट जोहता था। इस तीसरे युद्ध में औरंगजेब को बड़ी ही कादरता से भागना पड़ा और शाही झंडा, हाथी और साज सामान राणाजी के हाथ लगे। जब औरंगजेब भागकर अजमेर पहुँचा, तब उसने वहाँ से • खान रुहेला को बारह हजार सेना के साथ साँवलदास से लड़ने भेजा; परंतु यह दल भी पुरमंडल में पराजित हुआ। इसी समय पर राणाजी ने अपने प्रधान अमात्य दयाल्साह को भेजा और उन्होंने मालवा से नर्मदा और बेतवा तक का देश लूटा । फिर सारंगपुर, देवास, सारोंज, मंडी, उजैन और चँदेरी भी लूटे गए। इसी समय उसने अपना दल महाराणा के बड़े पुत्र जयसिंह की सेना से मिलाकर शाहजादा आजम को चित्तौर के समीप परास्त किया। तब महाराणा के द्वितीय पुत्र भीम ने अपना दल जोधपुर के राठौरों के दल से मिलाकर शाहजादा अकबर और 'तहौवरखाँ को गनोरा पर हराया। इस प्रकार मुगलों की प्रचंड हार से प्रोत्साहित होकर सीसोदियों और राठोरों ने शाहजादा अकबर को अपनी ओर मिलाकर औरंगजेब को तख्त से उतार देने का प्रबंध किया, परंतु दुर्भाग्यवश इनको यह संदेह हो गया कि अकबर गुप्त रीति से अपने पिता से मिला हुआ है; अतः जीत जिताकर ये अपने इरादे से हट गए और औरंगजेब वच गया। . इस युद्ध में सीसौदियों और राठौरों ने मिलकर औरंगजेब .से युद्ध किया। राठौरों के मिलने का यह कारण था कि उनके