पृष्ठ:भूषणग्रंथावली.djvu/९५

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[ ४] रन-भू-सिला सु भौलिला' आयुषमान खुमान |८|| भूपन भनि ताके भयो भुव-भूपन नृप साहि । रातौ दिन संकित रहें साहि सवै जग माहि ।।९।। कवित्त-मनहरण एते हाथी दीन्हें मालमकरंद जू के नंद जेते गनि सकति १ शिवाजी के घराने की "माँसिला" उपाधि थी। २ भूषणजी शिवराज को "सरजा , मौसिला , खुमान' इत्यादि नामों से पुकारते हैं; सो इन उपाधियों को यहाँ पर उन्होंने व्युत्पत्ति भी की है। ३ शाहनी, महाराज शिवराज के पिता । भषण जी महारान शिवाजी को उदयपुर के प्रसिद्ध "सोसौदिया” कुलोद्भव रतलाते हैं और यह ठीक भी नान पड़ता है। यद्यपि नुनते हैं कि आज कल कुछ मदरदशी लोग भ्रमवश शिवाजी के वंशन महाराज कोल्हापुर को क्षत्रिय तक मानने में आनाकानी करते हैं, निसका पूरा दखेड़ा हो उठ खड़ा हुआ है; पर बाड कृत "रानस्थान" में इनके वंश का "सीतीदिया" घराने से यों संबंध लिखा है- "अनयसी ( महाराजा उदयपुर सन् १३०१२सी ), सुजन जी, दलीप जी, सिव जी, भोरा ली, देवरान, उग्रसेन, माहोल जो, बैलो जी, ननको नी, सत्तो नी, संमा ली, शिवा जी ।" (इंडियन पलिकेशन सोसायटी, कलकत्ता द्वारा सन् १८९९ ई० में दंगाल प्रेस में मुद्रित प्रति की जिल्द १ पृष्ठ २८२ देखिए ) इसमें शिवानी के पिता का नाम शंमा नो और मालो नी का माहोल जी लिखा है; कदाचित् उन महानुभावों के ये उपनाम हों। शाह नी सन् १५६४ में उत्पन्न होकर जनवरी १६६४ में स्वर्गवासी हुए।