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पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/११०

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भ्रमरगीत-सार
 

आपुन पद-मकरंद-सुधारस हृदय रहत नित बोरे।
हमसों कहत बिरस समझौ, है गगन कूप खनि खोरे[]
धान को गाँव पयार तें जानौ ज्ञान बिषयरस भोरे।
सूर सो बहुत कहे न रहै रस गूलर को फल फोरे[]॥५६॥


निरखत अंक स्यामसुन्दर के बारबार लावति छाती।

लोचन-जल कागद-मसि मिलि कै ह्वै गइ स्याम स्याम की पाती[]
गोकुल बसत संग गिरिधर के कबहुं बयारि लगी नहिं ताती।
तब की कथा कहा कहौं, ऊधो, जब हम बेनुनाद सुनि जाती॥
हरि के लाड़[] गनति नहिं काहू निसिदिन सुदिन रासरसमाती।
प्राननाथ तुम कब धौं मिलौगे सूरदास प्रभु बालसँघाती॥५७॥


राग मारू
मोहिं अलि दुहूं भाँति फल होत।

तब रस-अधर लेति मुरली, अब भई कूबरी सौत॥
तुम जो जोगमत सिखवन आए भस्म चढ़ावन अँग।
इन बिरहिन में कहुँ कोउ देखी सुमन गुहाये मंग[]?
कानन मुद्रा पहिरि मेखली धरे जटा आधारी।
यहाँ तरल तरिवन कहँ देखे अरु तनसुख[] की सारी॥
परम बियोगिनि रटति रैन दिन धरि मनमोहन-ध्यान।
तुम तो चलो वेगि मधुबन को जहाँ जोग को ज्ञान॥
निसिदिन जीजतु है या ब्रज में देखि मनोहर रूप।
सूर जोग लै घर घर डोलौ, लेहु लेहु धरि सूप॥५८॥


  1. खोरे=नहाए।
  2. गूलर को फल फोरे=गूलर का फल फोरने से अर्थात् ढकी छिपी बात खोलने से।
  3. पाती=पत्री, चिट्ठी।
  4. लाड़=प्रेम।
  5. मंग=माँग।
  6. तनसुख=एक कपड़ा।