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भ्रमरगीत-सार
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कीर, कमठ, कोकिला उरग-कुल[१] देखत ध्यान धरे।
आपुन क्यों न पधारौ सूर प्रभु, देखे कह बिगरे॥३१७॥
राग अड़ानो
सबन अबध[२], सुंदरी बधै जनि।
मुक्तामाल, अनंग! गंग नहिं, नवसत[३] साजे अर्थ-स्यामघन॥
भाल तिलक उडुपति न होय यह, कबरि-ग्रँथि अहिपति न सहस-फन।
नहिं बिभूति दधिसुत न भाल जड़! यह मृगमद चंदन-चर्चित तन॥
न गजचर्म यह असित कँचुकी, देखि बिचारि कहाँ नंदीगन।
सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस बिनु बरबस काम करत हठ हम सन[४]॥३१८॥
राग मलार
राग सारंग
कहाँ रह्यो, माई! नंद को मोहन।
वह मूरति जिय तें नहिं बिसरति गयो सकल-जग-सोहन॥