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भ्रमरगीत-सार
 

काम पावक तूलमय तन बिरह-स्वास समीर।
भसम नाहिन होन पावत लोचनन के नीर॥
अजौं लौं यहि भाँति ह्वैहै कछुक सजग सरीर।
इते पर बिनु समाधाने क्यों धरैं तिय धीर॥
कहौं कहा बनाय तुमसों सखा साधु प्रबीन?
सूर सुमति बिचारिए क्यों जियैं जल बिनु मीन॥८॥


राग सारंग
पथिक! सँदेसो कहियो जाय।

आवैंगे हम दोनों भैया, मैया जनि अकुलाय॥
याको बिलगु[१] बहुत हम मान्यो जो कहि पठयो धाय[२]
कहँ लौं कीर्ति मानिए तुम्हरी बड़ो कियो पय प्याय॥
कहियो जाय नंदबाबा सों, अरु गहि पकर्‌यो पाय।
दोऊ दुखी होन नहिं पावहिं धूमरि धौरी[३] गाय॥
यद्यपि मथुरा बिभव बहुत है तुम बिनु कछु न सुहाय।
सूरदास ब्रजबासी लोगनि भेंटत हृदय जुड़ाय॥९॥


नीके रहियो जसुमति मैया।

आवैंगे दिन चारि पाँच में हम हलधर दोउ भैया॥
जा दिन तें हम तुमतें बिछुरे काहु न कह्यो 'कन्हैया'।
कबहूँ प्रात न कियो कलेवा, साँझ न पीन्हीं[४] धैया[५]
बंसी बेनु सँभारि राखियो और अबेर सबेरो।
मति लै जाय चुराय राधिका कछुक खिलौनो मेरो॥


  1. बिलग मानना=बुरा मानना।
  2. धाय=दाई। यशोदा ने कृष्ण के मथुरा जाने पर देवकी के पास कहला भेजा था कि––"हौं तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रहियो"
  3. धौरी=सफेद।
  4. पीन्ही=पी।
  5. धैया=थन से सीधी छूटती दूध की धारा।