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भ्रमरगीत-सार
 



उद्धव का ब्रज में आना

राग मलार

कोऊ आवत है तन स्याम।

वैसेइ पट, वैसिय रथ-वैठनि, वैसिय है उर दाम॥
जैसी हुतिं उठि तैसिय दौरीं छाँड़ि सकल गृह-काम।
रोम पुलक, गदगद भई तिहि छन सोचि अंग अभिराम॥
इतनी कहत आय गए ऊधो, रहीं ठगी तिहि ठाम।
सूरदास प्रभु ह्याँ क्यों आवै बंधे कुब्जा-रस स्याम॥१३॥


उद्धव का ब्रज में दिखाई पड़ना

राग मलार

है कोई वैसीई अनुहारि।

मधुबन ते इत आवत, सखि री! चितौ तु नयन निहारि॥
माथे मुकुट, मनोहर कुंडल, पीत बसन रुचिकारि।
रथ पर बैठि कहत सारथि सों ब्रज-तन[१] बाँह पसारि॥
जानति नाहिंन पहिचानति हौं मनु बीते जुग चारि।
सूरदास स्वामी के बिछुरे जैसे मीन बिनु वारि॥१४॥


राग सोरठ
देखो नंदद्वार रथ ठाढ़ो।

बहुरि सखी सुफलकसुत[२] आयो पज्यो सँदेह उर गाढ़ो॥
प्रान हमारे तबहिं गयो लै अब केहि कारन आयो।
जानति हौं अनुमान सखी री! कृपा करन उठि धायो।


  1. तन=ओर, तरफ।
  2. सुफलकसुत=अक्रूर।