पृष्ठ:भ्रमरगीत-सार.djvu/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
भ्रमरगीत-सार
 

इतने अंतर आय उपंगसुत तेहि छन दरसन दीन्हो।
तब पहिंचानि सखा हरिजू को परम सुचित तन कीन्हो॥
तब परनाम कियो अति रुचि सों और सबहि कर जोरे।
सुनियत रहे तैसेई देखे परम चतुर मति-भोरे[१]
तुम्हरो दरसन पाय आपनो जन्म सफल करि जान्यो।
सूर ऊधो सों मिलत भयो सुख ज्यों झख पायो पान्यो[२]॥१५॥



कहौ कहाँ तें आए हौ।

जानति हौं अनुमान मनो तुम जादवनाथ पठाए हौ॥
वैसोइ बरन, बसन पुनि वैसेइ, तन भूषन सजि ल्याए हौ।
सरबसु लै तब संग सिधारे अब कापर पहिराए हौ॥
सुनहु, मधुप! एकै मन सबको सो तो वहाँ लै छाए हौ।
मधुबन की मानिनी मनोहर तहँहिं जाहु जहँ भाए हौ॥
अब यह कौन सयानप? ब्रज पर का कारन उठि धाए हौ।
सूर जहाँ लौं ल्यामगात हैं जानि भले करि पाए हौ॥१६॥


राग नट

ऊधो को उपदेस सुनौ किन कान दै?

सुंदर स्याम सुजान पठायो मान दै॥ध्रुव॥

कोउ आयो उत तायँ जितै नँदसुवन सिधारे।
वहै बेनु-धुनि होय मनो आए नँदप्यारे॥
धाई सब गलगाजि कै[३] ऊधो देखे जाय।
लै आईं ब्रजराज पै हो, आनँद उर न समाय॥
अरघ आरती, तिलक, दूब दधि माथे दीन्ही।


  1. भोरे=भोले।
  2. पान्यो=पानी। झख पायो पान्यो=मछली ने पानी पाया।
  3. गलगाजि कै=आनंदित होकर।