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भ्रमरगीत-सार
 

अपनो दूध छांडि को पीवै खार कूप को पानी॥
ऊधो जाहु सबार[१] यहाँ तें बेगि गहरु[२] जनि लावौ।
मुँहमाँग्यो पैहो सूरज प्रभु साहुहि आनि दिखावौ॥२३॥


जोग ठगौरी[३] ब्रज न बिकैहै।

यह ब्योपार तिहारो ऊधो ऐसोई फिरि जैहै॥
जापै लै आए हौ मधुकर ताके उर न समैहै।
दाख छांड़ि कै कटुक निंबौरी[४] को अपने मुख खैहै?
मूरी के पातन के केना[५] को मुक्ताहल दैहै।
सूरदास प्रभु गुनहिं छांड़ि कै को निर्गुन निरबैहै? ॥२४॥


राग नट
आए जोग सिखावन पाँड़े।

परमारथी पुराननि लादे ज्यों बनजारे टाँड़े[६]
हमरी गति पति कमलनयन की जोग सिखैं ते राँड़े॥
कहौ, मधुप, कैसे समायँगे एक म्यान दो खाँड़े॥
कहु षटपद, कैसे खैयतु है हाथिन के संग गाँड़े[७]‌।
काकी भूख गई बयारि भखि बिना दूध घृत माँड़े॥
काहे को झाला[८] लै मिलवत, कौन चोर तुम डांड़े[९]?
सूरदास तीनों नहिं उपजत धनिया धान कुम्हाँड़े॥२५॥


  1. सबार=सवेरे।
  2. गहरु=विलंब, देर।
  3. ठगौरी=ठगपने का सौदा।
  4. निबौरी=नीम का फल।
  5. केना=सौदा। छोटा मोटा साग मूली आदि का बदला।
  6. टाँड़ा=व्यापार का माल।
  7. गाँड़ा=गन्ने या चारे का कटा हुआ टुकड़ा। हाथी के साथ गाँड़े खाना=(कहाबत) देखादेखी अनहोनी बात करना।
  8. झाला=झल्ल, बकवाद।
  9. डाँड़े =दंड दिया।