पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/११

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समीक्षा

रस में शराबोर कविता में भी रमणीयता है, इसलिये चाहे वह उपयोगिनी न हो, और चाहे उसके द्वारा समाज में किसी प्रकार के कुरुचि के भावों को आश्रय मिला हो, परंतु वह कविता अवश्य है । कविता- क्षेत्र से उसका बहिष्कार नहीं किया जा सकता। इन्हीं कवियों ने यदि प्रेम-भक्ति का दिव्य चित्र भी खींचा होता, तो क्या बात थी ! वे ऐसा न कर सके, इसका खेद है; पर उन्होंने जो कुछ किया, उसके लिये उनको शाप देने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने प्रतिकूल समय में कविता के दीपक को बुझने से तो बचाया । क्या हुआ, जो बुरे तेल के कारण दीपक से कुछ मलिन धुआँ भी निकला । यदि विषय-प्रेम पर कविता लिखनेवाले कवियों का भी अभाव हो गया होता, तो संसार से काव्यालोक का सदा के लिये विच्छेद हो गया होता। समाज की पतितावस्था में भी उसमें आनंदानुभव की थोड़ी-सी शक्ति रह गई थी। इस शक्ति की रक्षा का श्रेय प्रेम-कविता को ही है । इसी प्रेम-कविता ने समय पाकर नारी-समाज के प्रति पुरुष-समाज के भावों पर बड़ा प्रभाव डाला। कहने का तात्पर्य यह कि समय के देखते विषय-प्रेमवाली कविता ने कम-से-कम कविता-जन्य आनंद के भाव को संपूर्ण नष्ट होने से बचा लिया। शृंगार-रस के अंतर्गत जिस वैवाहिक प्रेम का वर्णन है, उस विवाह के संबंध में एक अँगरेज़ लेखक के कुछ विचार यहाँ दिए जाते हैं-

  • "नर-नारी जिस शक्ति के वश आनंदमय विवाह-बंधन में

आबद्ध होते हैं, वही उन मधुर प्रभावों की सत्ता और उद्गम का कारण है, जिनसे पवित्र-से-पवित्र, उच्च-से-उच्च और निःस्वार्थ-से- निःस्वार्थ भावनाओं तथा कर्मों को बल और स्थिति प्राप्त होती है ।*The purest, noblest and most unselfish aspirations and purposes derive their strength and being from the sweet influences which have their beginning and