स्पष्ट है। रात्रि में भ्रमरों का वर्णन कवि लोग करते हैं। संस्कृत- कविता के प्रसिद्ध ग्रंथ कादंबरी में ऐसा वर्णन है। मतिराम के परवर्ती देव ने भी रात्रि में भ्रमरों का वर्णन किया है। मतिराम के छंद में तो घटना का अवसर संध्या ही। अभी तो दिन का अवसान-मात्र हुआ है। सरोवरों के कमल मुद्रित हो गए होंगे। उनकी सुवास भी बंद होगी। ऐसे में किसी पद्मिनी की गंध पाकर भ्रमरों का आकृष्ट होना परम स्वाभाविक है। इस प्रकार का भ्रमर-वर्णन चित्य नहीं। सब बातें पाठक स्वयं विचार लें।
दोष
पाठकों ने इस समीक्षा में कविवर मतिराम की कविता में पाए जानेवाले गुणों का ठौर-ठौर पर उल्लेख पाया होगा; दोषों के देखने का उन्हें बहुत ही कम अवसर मिला होगा। पर इसका यह अर्थ नहीं कि मतिराम की कविता में किसी प्रकार की दोषोद्भावनाएँ की ही नहीं जा सकतीं। बात यह है कि यद्यपि हिंदी-संसार में प्राचीन काल से ‘रसराज' और 'ललितललाम' का बड़ा आदर है, फिर भी बहुत से विद्वानों की दृष्टि में मतिराम का पद उतना ऊँचा नहीं है, जितना उसे हम समझते हैं। कुछ विद्वान् तो मतिराम को दास, पद्माकर तथा तोष से भी घटकर मानते हैं, पर हमारी राय में मतिराम का स्थान इन सबके ऊपर है। जिन कारणों से हम मतिराम का इतना आदर करते हैं, उनको हिंदी-संसार के सामने रखना हमारा कर्तव्य है। इससे दो लाभ होंगे। यदि मतिभ्रम से हमारे हृदय में मतिराम को ऊँचा स्थान मिल गया होगा, तो विद्वान् समालोचक हमारी भूलें दिखलाकर हमारा भ्रम दूर कर देंगे, और हम भी उन्हीं के समान मतिराम को दास और पद्माकर आदि से हीन कवि मानने लगेंगे; पर यदि हमारे दर्शित गुणों में कुछ सार हुआ और विद्वानों ने उन