पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१२५

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समीक्षा


से पुकारते हैं । इस साहित्यिक चोरी को हम बहुत बुरा समझते हैं । मतिरामजी की कविता में पूर्ववर्ती कवियों के भाव जहाँ लड़ गए हैं, उनका एक छोटा-सा संग्रह पाठकों को तुलनात्मक समालोचना वाले शीर्षक में मिलेगा। पाठकगण वहाँ सहज ही में यह निर्णय कर सकते हैं कि किस पद्य पर चोरी का इलज़ाम सफलता-पूर्वक लगाया जा सकता है । जो ऐसे पद्य उस शीर्षक में होंगे, उनका यहाँ फिर से लिखना बिलकुल व्यर्थ है।

अब हम पाठकों के सामने मतिराम के प्राप्त ग्रंथों में जो त्रुटियाँ पाई जाती हैं, उनका अत्यंत स्थूल वर्णन करेंगे । यह हम ऊपर कह ही आए हैं कि मतिराम की कविता में दोष निकालने का प्रयत्न हमने बहुत कम किया है, इसलिये अधिक दोष दिखलाने में हम अभी असमर्थ हैं।

(१) मतिरामजी के दो ग्रंथ–'ललितललाम' और 'रसराज'- प्राप्त हैं। वे दोनो ही अपूर्ण हैं । रसराज नाम यह सूचित करता है कि इसमें शृंगार-रस का संपूर्ण वर्णन होगा, परंतु ग्रंथ में यह बात नहीं पाई जाती । शृंगार-रस का केवल नाम आ गया है, परंतु रस का स्वरूप नहीं वर्णन किया गया । संचारी भावों का वर्णन ग्रंथ में बिलकुल नहीं हुआ । रसराज-जैसे उत्तम ग्रंथ में यह कमी बेतरह खटकती है । ललिताललाम में शब्दालंकारों का वर्णन छोड़ दिया गया है, यद्यपि मतिरामजी ने अपने अलंकार के लक्षण में उनकी पृथक् सत्ता स्वयं स्वीकार की है। इस कमी के कारण ललितललाम में अपूर्णता का दोष लग गया है । और भी कई अलंकारों और उनके भेदांतरों का वर्णन ललितललाम में नहीं पाया जाता।

(२) मतिरामजी के अधिकांश छंदों में कला का नैपुण्य तो बहुत अधिक पाया जाता है, पर तन्मयता की उचित मात्रा उनके थोड़े ही छंदों में पाई जाती है । यदि मतिरामजी सूर और तुलसी