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मतिराम-ग्रंथावली


की श्रेणी के कवि होते, तो उनके काव्य में तन्मयता की कमी उतनी न खटकती, क्योंकि कथा-प्रसंग के साथ थोड़े-बहुत तन्मयता-हीन वर्णन भी खप सकते हैं, परंतु मतिराम उस श्रेणी के कवि हैं, जिनके प्रत्येक छंद का दूसरे छंद से कोई संबंध नहीं । उनका काव्य तो मुक्तकों से परिपूरित कहना चाहिए । ऐसी दशा में प्रत्येक छंद का सर्वांग-सुंदर होना परमावश्यक है।

(३) 'रसराज' में परकीया और गणिका का वर्णन परम मनोहर हुआ है। यद्यपि मतिराम ने स्बकीया का वर्णन भी अच्छा किया है; पर सब बातों पर विचार करने के बाद यही निष्कर्ष निकलता है कि उनका गणिका और परकीया का वर्णन ही अधिक अच्छा है । कला- नैपुण्य की सर्वत्र प्रशंसा होनी चाहिए; परंतु कुरुचि-प्रवर्तक काव्य का कर्ता अपनी कृति के लिये समाज के प्रति उत्तरदायी अवश्य है । ऐसी कृति से कवि के चरित्र-संबंध में यदि प्रतिकूल अनुमान किया जाय, तो उसे निष्कारण नहीं मानना होगा। इनके बहुत-से शृंगार- वर्णनों में अश्लीलता की स्पष्ट झलक दिखलाई पड़ती है।

(४) इनके कोई-कोई छंद नितांत साधारण हैं। न तो उनमें तन्मयता का पता है, और न कला-नैपुण्य का समावेश । यदि किसी को मतिराम के केवल ऐसे ही दो-चार छंद याद हों, तो वह इनको अवश्य ही बहुत साधारण कवि समझेगा।

(५) हिंदी-कविता के आचार्यों ने अलंकारों के जो लक्षण दिए हैं, उनमें प्रायः भ्रामक लक्षण अधिक पाए जाते हैं । 'शिवराज-भूषण' में हमको ऐसे लक्षण बहुत-से मिले हैं। 'ललितललाम' के भी अनेक लक्षण ऐसे ही दोष से दूषित हैं।

(६) काव्य-शास्त्र में यति-भंग, पुनरुक्ति, अधिक-न्यून-पदत्व आदि जिन दोषों का वर्णन पाया जाता है, उनके भी उदाहरण इनकी कविता में मिल सकते हैं, यद्यपि इनकी संख्या बहुत थोड़ी है।