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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१३

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समीक्षा

रव सुन पड़ते हैं, ये सब प्रेम के ही असंख्य गीत हैं। मनुष्य की वर्ण-प्रियता, उसका कला और संगीत के सौंदर्य और मधुरता पर प्रेम, कविता में लालित्य के प्रति अनुराग, उसी प्रकार नयनाभिराम चित्रों का भला लगना, यह सब ईश्वर-दत्त उस विश्व-प्रेम के कारण है। इसके कारण केवल सुंदरता के प्रति प्रीति ही नहीं उत्पन्न होती, वरन् समग्र सुंदर और आनंददायी वस्तुओं का ज्ञान और स्वीकार भी इसी से होता है।

"यह ऐसी चित्त की गति है, जो प्रत्येक अवस्था को दृढ़ करती है, प्रत्येक शक्ति में स्फूर्ति उत्पन्न करती है, सारी सत्ता में जीवन-सुधार, उच्चता, पवित्रता और मधुरता के भाव भर देती है, तथा सत्प्रयोजन से प्रेरित होने पर इस मृत्यु-लोक में ही हमारी आत्मा की उन उच्चाशय शक्तियों का उद्घाटन और संवर्द्धन करती है, जिनकी पूरी सफलता और संपूर्णता स्वर्ग में ही पाई जाती है।"

***

[]*"प्रत्येक पुरुष के जीवन में दो तथा बहुतों के जीवन में तीन


from it not only springs the love of the beautiful, but even the perception and recognition of all that which is pleasing and lovely.

This is the emotion that strengthens every faculty, quickens every power, animates, modifies, ennobles, purifies and sweetens the entire being, and markes our life upon earth when directed by Godly purposes, the enfolding and enriching of those nobler powers of the soul which are to find their fullest fruition and perfection in heaven itself.

(What a young husband ought to know pages 26-27)

  1. *In each life, there are two important events, and