पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१४६

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- जहाँ प्रणयियुग्म चुपचाप छिपकर शंका-समेत मिलते हैं, उस स्थान को 'सहेट' कहते हैं । उपर्युक्त छंद में वचन-चतुर नायक ने नायिका को सहेट का पूरा पता दिया है !

पिंगल-वणिक दंडकांतर्गत कुछ मुक्तक छंद हैं। इनमें गणों का विचार न होकर अक्षरों की संख्या का ही प्रमाण रहता है । ऐसे ही छंदों में 'घनाक्षरी' छंद की भी गणना है। इसका दूसरा नाम 'मनहर' या 'मनहरण' भी है, तथा यही 'कवित्त' के नाम से अत्यंत लोक-प्रसिद्ध हो रहा है। इसमें ३१ अक्षर होते हैं, और १६ तथा १५ अक्षरों के बाद क्रम से विश्राम होता है । इसी विश्राम को 'यति' कहते हैं । मतिरामजी का ऊपर दिया हुआ छंद ऐसी ही घनाक्षरी है।

-रस-नायिका को देखकर नायक के चित्त में मनोविकार उत्पन्न हुआ है, इस कारण 'नायिका' आलंबन विभाव है । नायिका के अंग- प्रत्यंग का दर्शन एवं उससे बात कर सकने का अवसर तथा स्थान उद्दीपन विभाव हैं । स्थायी भाव रति है। सहेट में मिलने को नायक का चतुरता-पूर्ण कथन कायिक अनुभाव है । इस प्रकार विभाव, भाव और अनुभाव के समुचित समावेश से छंद में संयोग-शृंगार-रस का चमत्कार है । नायक रूप, यौवन, विद्यादि गुण-संपन्न है । उसकी वचन-चातुरी का तो छंद फोटो ही है । इस प्रकार नायक वचन-चतुर है । वह उपपति है, क्योंकि अपनी विवाहिता पत्नी के अतिरिक्त अन्य स्त्री को सहेट में बुलाकर उससे रमण करने की अभिलाषा रखता है । नायिका परकीया है, क्योंकि सहेट में उपपति से मिलने की इच्छा रखती है । वह प्रौढ़ा है, क्योंकि प्रियतम से अकेले निर्जन स्थान में मिलने जाने में उसे हिचकिचाहट नहीं है । अभिसार करके वह उपपति को मिलेगी, इसलिये अभिसारिका भी है। यद्यपि स्वयं उसने कुछ नहीं कहा है, फिर भी वचन-चतुर नायक उसे इस योग्य समझता है कि वह उसके विदग्धता-पूर्ण वचन समझ ले । इससे इस