पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/१५१

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१४७
समीक्षा

समीक्षा १४७

  • "प्रत्येक कवि पद्य-रचयिता है, और प्रत्येक अच्छा कवि उत्कृष्ट

पद्य-रचयिता है । सर्वोत्तम कवि वही है, जिसके पद्यों में सामर्थ्य (पद्य-सामंजस्य और अर्थ-व्यक्त-गुण), माधुर्य, अव्यर्थ-पदत्व (भरती के पदों का अभाव), रोचकता (अरुचि उत्पन्न करनेवाले चर्वित-चर्वण का अभाव), सहज पद्य-प्रवाह एवं पद्य और भाव की सामंजस्य-पूर्ण एकता हो।" ___ उपर्युक्त कथित काव्य-गुणों पर दृष्टि रखते हुए मनिरामजी के छंद की परीक्षा करनी होगी, तभी उस पद्य की बारीकियां समझ में आवेंगी। पहले सामर्थ्य को लीजिए । मतिराम की घनाक्षरी के दूसरे पद में यति-भंग अवश्य है; पर शेष पद्य न तो कहीं से विकलांग है, और न अपेक्षित अक्षरों की कहीं पर अधिकता होने पाई है। पढ़ने में कहीं पर जिह्वा को कष्ट नहीं होता। अर्थ के लिए व्यंग्य का आश्रय अवश्य लिया गया है, पर पद्य का अर्थ-व्यक्त-गुण नष्ट नहीं हुआ है । सो पद्य में 'सामर्थ्य'-गुण का सन्निवेश पूर्ण रूप से है । व्रजभाषा की माधुरी यों ही प्रसिद्ध है, फिर सूर, देव और मतिराम की रचनाओं का पीयूष-पान करके किसको संतोष न होगा ? सुकुमार विचार, पद्य-संगठन-सरलता एवं शब्द-संगीत, सभी से अनुलिप्त माधुर्य गुण के दर्शन पद्य में सहज-सुलभ हो रहे हैं । सहज पद्य-प्रवाह के विषय में हमें यही कहना है कि मतिराम-जैसे सुकवियों के काव्य में इस गुण का अभाव ढूंढ़ निकालना बड़ा ही कठिन काम है । फुटकर पद्यों में रोचकता नष्ट होने का भय कम रहता है । सहेट स्थान के

  • Every poet then, is a versifier; every fine poet

an excellent one; and he is the best whose verse exhibits the greatest amount of strengthsweetness, un- superluousness, variety, straight, forwardness, and oneness. _Leigh Hunt's: What Is poetry?