पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२०४

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मतिराम-ग्रंथावली

२०० मतिराम-ग्रथावली andutomonlineNayalinivetonabasinadiwasiwakar यहाँ बूंदी-राज्य का थोड़े में ऐसा इतिहास दे देना उचित समझते हैं, जिससे 'ललितललाम' में आए हुए वर्णनों के समझने में किसी प्रकार की अड़चन न पड़े। हाड़ा राजपूतों की जो शाखा इस समय बूंदी-राज्य की अधिपति है, वह 'चौहान' नाम से जगत्प्रसिद्ध है। भारत के इतिहास में शूरता- वीरता के लिये अगर बूंदी के चौहानों के समान अन्य कोई राज- पूत-वंश प्रसिद्धि प्राप्त कर सका है, तो वह उदयपुर का 'सिसौदिया' ही है। बूंदी के चौहानों के आदि-पुरुष का नाम 'अस्थिपाल' था । इनका यह नाम कैसे पड़ा, इस संबंध में कई कथाएँ कही जाती हैं, जिनका सारांश इतना ही है कि अस्थि शेष रह जाने के बाद देवी की कृपा से पुनः जीवन-लाभ करने के कारण यह 'अस्थिपाल' नाम से प्रसिद्ध हुए । अस्थि का पर्याय 'हड्डी' है, सो इनके वंशज बाद को 'हाड़ा' कहलाने लगे। मतिरामजी ने अपनी कविता में जिस 'हाड़ा' शब्द का व्यवहार बार-बार किया है, उसकी उत्पत्ति इसी प्रकार है। अस्थिपालजी के वंशज वीरसिंहजी ने, सं० १३०० के लगभग, 'मीना'-जाति के सरदार से 'बूंदी' छीन ली। तभी से वह चौहानों की राजधानी हुई। . दीवान वीरसिंहजी के वंशजों में नारायणदास बड़े ही शक्तिशाली और वीर पुरुष थे। यह चित्तौड़ के राणा के प्रधान सहायक थे । एक बार राणाजी का बाबर से युद्ध होनेवाला था, साथ में नारायणदास भी थे। बाबर की सेना को अधिक शक्ति-संपन्न समझकर राणाजी ने हट जाना ही मुनासिब समझा; पर नारायणदास को यह बात पसंद न आई। उन्होंने राणाजी से स्पष्ट कहा कि आप 'दीवान' पदवी न P are PRIORATORS ATTAMITTE alm