पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२०७

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२०३
समीक्षा

समीक्षा २०३ सुरजनजी के विषय में जो कुछ इतिहास कहता है, प्रायः वही कविवर मतिरामजी ने अपने ढंग से कहा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि मतिराम-कृत सुरजन-प्रशंसा कोरी प्रशंसा ही न थी, वरन् रावराजा सुरजनजी उस प्रशंसा के पूर्णतया उपयुक्त पात्र थे। मतिरामजी कहते हैं- "एक धर्म-गृह-खंभ, जंभ-रिपु-रूप अवनि पर; एक बुद्धि - गंभीर, धीर, बीराधिबीरबर । एक ओज - अवतार, सकल सरनागत-रक्षक; एक, जासु करवाल सकल खल-कुल कहँ तक्षक।".. "मतिराम' एक दातानि-मनि जग जस अमल प्रगट्टियउ ; . चहवान - बंस - अवतंस इमि एक राव सुरजन भयउ।" युद्ध में अकबर बादशाह के दाँत खट्टे करनेवाला, गोंडवाने का विजेता यदि 'ओज-अवतार' कहा जाय, तो बड़ी भारी अतिशयोक्ति नहीं ठहरती। अकबर को वश में पाकर भी उसके साथ वीरोचित बर्ताव, संधि की शर्तों में प्राप्त आत्मसम्मान और धर्म-प्रेम तथा काशी-शासन में न्याय के सत्कार के कारण सुरजनजी को 'धर्म-गृह- खंभ', 'बुद्धि-गंभीर' आदि विशेषणों का उपयुक्त पात्र मानना पड़ेगा। उनके लिये मतिरामजी का यह पद समुचित ही है- "दुरजन - बधू - उरजन को सिंगार-हर ऐसो जस गावै सुर-जन सुरजन को।" भोज रावराजा सुरजन की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र भोजजी बूंदी के सिंहासन पर बैठे। इनका शासन-काल सं० १६४२-१६६४ है। यह बड़े ही वीर पुरुष थे । चाँद सुलतान का दर्प-दलन करने के उपलक्ष्य में बादशाह अकबर का बनवाया ‘भोज-बुर्ज' आज भी अहमदनगर