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पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२२४

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मतिराम-ग्रंथावली

 

(६) "भूषन तीषन तेज-तरन्नि सों

बरिन को कियो पानिप-हीनो।

(भूषण)


"दिल्ली के दिनेस के प्रचंड तेज-आँच लागे

पानिप रह्यो न काहू भूपति-तलाव मैं;

(मतिराम)

(७) "चमकती चपला न, फेरत फिरंगै भट,
इंद्र की न चाप, रूप बैरष समाज को;
धाए धुरवा न, छाए धूरि के पटल, मेघ
गाजिबो न, बाजिबो दुंदुभि दराज को;
भौंसिला के डरन डरानी रिपु-रानी कहैं—
पिय, भजौ देखि उदौ पावस के साज को;
घन की घटा न, गज-घटनि सनाह साजै,

'भूषन' भनत, आयो सेन सिवराज को।"

(भूषण)

"पावस-भीति, बियोगिनी बालनि यो समुझाय सखी सुख साजैं;
जोति जवाहिर की 'मतिराम' नहीं सुर-चाप छिनौ छबि छाजैं।
दंत लसैं, बक-पाँति नहीं, धुनि दुंदुभि की, न घन घन गाजैं;

रीझिकै भाऊ नरिंद दिए कबिराजन के गजराज बिराजैं।"

(मतिराम)

(८) "देसन देसन नारि नरेसन 'भषन' यों सिख देहि दया सों;
मंगन ह्वै करि दंत गहो तिन, कंत, तुम्हैं है अनंत महा सों।
कोटि गहौ कि गहौ बन ओट कि फौज की जोट सजौ प्रभुता सों;

और करो किन कोटिक राह, सलाह बिना बचिहौ न सिवा सों।"

(भूषण)

"बिपिन-सरन के चरन तकौ राव ही के,
चढ़ौ गिरि पर, के तुरंग परवर मैं;