राखौ परिवार को कि आपनीयै हठ, राज-
संपति दै मिलौ, कै नगारे दै समर मैं।
कहै 'मतिराम', रिपु-रानी निज नाहनि सों,
बोलें यों डरानी भावसिंहजी के डर मैं;
बैर तौ बढ़ायो, कह्यो काहू को न मान्यो, अब
दाँतनि तिनूका, कै कृपान गहौ कर मैं।"
(मतिराम)
(९) "दल के चढ़त फन-मंडल फनीपति को
फूटि-फाटि जात साथ सैल की सिलान के;"
(मतिराम)
"काच-से कचरि जाति सेस के असेस फन,
कमठ की पीठि पै पिठी-सी बाँटियतु हैं।"
(भूषण)
(१०) "औरनि के औगुननि तचि कबिजन राव
होत हैं सुखित तेरी कीर्ति-नदी न्हायकै;
खायकै अँगार, आंच औटिकै चकोरगन
होत हैं मुदित चंद-चाँदनी को पायकै।"
(मतिराम)
'भूषन' यों कलि के कबिराजन राजन के गन पाय नसानी;
पुन्य-चरित्र सिवा सरजै बर न्हाय पवित्र भई पुनि बानी।"
(भूषण)
मतिराम के ग्रंथ और आश्रयदाता
महाकवि मतिराम के जिन ग्रंथों का पता अब तक लगा है, उन सबका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है—
(१) फूल-मंजरी
इस ग्रंथ में ६० दोहे हैं। एक दोहे को छोड़कर शेष ५९ दोहों