पृष्ठ:मतिराम-ग्रंथावली.djvu/२२५

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- Lundane समीक्षा २२१ राखौ परिवार को कि आपनीय हठ, राज-. संपति दै मिलौ, के नगारे दै समर मैं। कहै मतिराम', रिपु-रानी निज नाहनि सों, बोलें यों डरानी भावसिंहजी के डर मैं ; बैर तौ बढ़ायो, कह्यो काहू को न मान्यो, अब दाँतनि तिनूका, के कृपान गहौ कर मैं।" (मतिराम) (९) "दल के चढ़त फन-मंडल फनीपति को फूटि-फाटि जात साथ सैल की सिलान के;" (मतिराम) "काच-से कचरि जाति सेस के असेस फन, कमठ की पीठि पै पिठी-सी बाँटियतु हैं।" __ (भूषण) (१०) "औरनि के औगुननि तचि कबिजन राव __ होत हैं सुखित तेरी कीति-नदी न्हायकै; . खायकै अँगार, आंच औटिकै चकोरगन होत हैं मुदित चंद-चाँदनी को पायकै।" (मतिराम) भषन' यों कलि के कबिराजन राजन के गन पाय नसानी; पुन्य-चरित्र सिवा सरजै बर न्हाय पवित्र भई पुनि बानी।" - (भूषण) मतिराम के ग्रंथ और आश्रयदाता महाकवि मतिराम के जिन ग्रंथों का पता अब तक लगा है, उन सबका संक्षिप्त परिचय नीचे दिया जाता है- (१) फूल-मंजरी इस ग्रंथ में ६० दोहे हैं। एक दोहे को छोड़कर शेष ५९ दोहों