का अर्थ संस्कृत और हिंदी के प्रतिष्ठित कोषों में देखेंगे, तो उनकी यह आपत्ति आप-ही-आप दूर हो जायगी। बिहारीलाल ने मतिराम को टिकमापुर में बसानेवाले हमीर नाम के राजा का नाम लिया है। इस पर दीक्षितजी को आपत्ति है कि उस समय मध्य-देश में हमीर
नाम का कोई राजा था ही नहीं। यह बात भी ठीक नहीं है । 'छत्र-
प्रकाश' में धंधेरे हमीर राजा का स्पष्ट उल्लेख है । इसका समय भी
मतिराम के समय से मिलता है, तथा इसकी कार्य-भूमि भी हम
दीक्षितजी के माने मध्य-देश में ही पाते हैं। निदान 'रस-चंद्रिका'
द्वारा प्राप्त वंश-परिचय को प्रामाणिक मानते हुए हम रसराज और
ललित ललाम आदि ग्रंथों के रचयिता कश्यपगोत्री त्रिपाठी मतिराम
को 'वृत्त-कौमुदी' के रचयिता वत्सगोत्री मतिराम से भिन्न मानते
हैं । वृत्त-कौमुदी-ग्रंथ रसराज के रचयिता का बनाया नहीं है।
रसराज और ललित ललाम की टीका के नमूने
अब हम रसराज और ललित ललाम, इन दो ग्रथों के संबंध में
कुछ विस्तार के साथ विचार करना चाहते हैं। हम ऊपर लिख
आए हैं कि इन ग्रंथों पर बड़ी ही सुंदर टीकाएँ बनी हैं। यहां उन
टीकाओं के कुछ नमूने भी दिए जाते हैं-
“अथा रसराज की वितपत्त । ग्रंथ को नाम रसराज । रसराज
कहे ते शृंगार सो या ग्रंथ मैं शृंगारैई प्रधान है। तातै या ग्रंथ कौ
नाम रसराज धरौ है ।। इति ।। अथ मूल दोहा ॥ होत नाइका
नाइकहि आलंबित शृंगार । तातै बरनौं नाइका नाइक मति अनुसार
॥१॥ अथ टीका ॥ नाइका नाइक जो है ताके आलंबित कहै आधार
सृगार रस होत है कौन प्रकार के आधार कहैं दोष के तातें कवि
कहत है कै नाइका-नाइक को बरनन करत हो अपनी बुद्ध के अनुसार
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