m २५६ मतिराम-ग्रंथावली करत ammomsannerivinemapeetnmoleemeges P AKRAMANITAMARHE SATTARAINIK मुग्धा-भेद मुग्धा के द्वै भेद बर भाषत सुकबि सुजान। एक अग्यातहि जौवना, ग्यातजौबना आन ॥ १७ ॥ - अज्ञातयौवना-लक्षण निज तन-जौबन-आगमन जो नहिं जानति नारि । सो अग्यात सु जौबना, बनत कबि निरधारि ॥ १८ ॥ उदाहरण खेलन चोर-मिहीचनि आजु गई हुती पाछिले द्यौस की नाई; आली कहा कहौं एक भई 'मतिराम' नई यह बात तहाँई। एकहि भौन दुरे इकसंग ही, अंग सों अंग छुवायो कन्हाई; कंप छुटयो, घनस्वेद' बढ्यो, तनु रोम उठ्यो, अँखियाँ भरि आई ॥ १९॥ लाल, तिहारे संग मैं खेल खेल बलाइ। मूंदत मेरे नयन हौ करन कपूर लगाइ ॥ २० ॥ ज्ञातयौवना-लक्षण निज तनु जौबन-आगमन जानि परत है जाहि । कबि-कोबिद सब कहत हैं ग्यात जौबना ताहि ॥ २१ ॥ १ हँसाई, २ तन, ३ उठे, ४ कपोल। छं० नं० १९ चोर-मिहीचनी लुकीलुकौरा नाम का खेल । छं० नं० २० बलाइ= बला से । छं० २० २१ का भावार्थ यह है-हे कृष्ण, मैं तुम्हारे साथ चोर-मिहीचिनी खेल क्यों खेल ? तुम तो अपने हाथों में कपूर लगाकर मेरी आँखें बंद करते हो, जिससे उनमें आँसू आ जाते हैं। अज्ञात-यौवना नायिका होने से नायक के कर-स्पर्श के कारण नायिका की आँखों में जो अश्रु-संचार होता है, वह उसका असली कारण नहीं समझ पाती है। उसका खयाल है कि नायक शरारत करने के लिये हाथों में कपूर लगाकर आँखें बंद करता है। Seema Namompotenon- Aan ।
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